इंश्योरेंस सेक्टर में कमिशनखोरी खत्म करेगा इरडा
इंश्योरेंस
रेग्युलेटर उस कमिशन में कमी करना चाहता है, जिससे शुरुआती
प्रीमियम का बड़ा हिस्सा निकल जाता है और कस्टमर को इसकी जानकारी तक नहीं होती।
पॉलिसी के पहले प्रीमियम पर अक्सर यह कमिशन 25-30 पर्सेंट तक होता
है।
कमिशन कम करने के
लिए इंश्योरेंस रेग्युलेटरी डिवेलपमेंट अथॉरिटी (इरडा) ने नए रूल्स का प्रस्ताव
किया है। इसमें उन खर्चों की सीमा तय करने की बात है, जिन्हें इंश्योरेंस
कंपनियां प्रीमियम पर चार्ज कर सकती है। इससे डिस्ट्रिब्यूटर्स को दशकों पुराना
भारी-भरकम कमिशन देने का कल्चर खत्म हो जाएगा, जिसके चलते
पॉलिसीहोल्डर्स को कम रिटर्न मिलता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस कमिशन पर
अक्सर नजर नहीं जाती और इनका पता तब चलता है, जब पॉलिसी शुरू में
सरेंडर की जाती है।
इरडा ने अपफ्रंट
कमिशन खत्म करने का भी प्रस्ताव दिया है। कुछ इंश्योरेंस कंपनियां बैंकों जैसे
डिस्ट्रिब्यूटर्स को यह कमिशन देती हैं। इकनॉमिक टाइम्स ने नए रूल्स वाला इरडा का
नोट देखा है, जिसे अभी नोटिफाई नहीं किया गया है। माना जा रहा है कि इन नए रूल्स से
पॉलिसी की मिस-सेलिंग कम होगी। इस बारे में एलआईसी के फॉर्मर चेयरमैन एस बी माथुर
ने कहा, 'नए रूल्स से पारदर्शिता बढ़ेगी और इंश्योरेंस प्रॉडक्ट्स को थोपे जाने के
मामले कम होंगे।' इरडा ने कई सेगमेंट्स के लिए खर्च की सीमा का प्रस्ताव भी किया है। इसमें
कहा गया है कि कोई भी बीमा कंपनी पहले साल के प्रीमियम का 10 पर्सेंट और सभी
रिन्यूअल प्रीमियम का 4 पर्सेंट से अधिक खर्च नहीं कर सकती। इंश्योरेंस इंडस्ट्री के एक
ऐग्जिक्यूटिव ने कहा कि नए रूल्स से कुछ समय तक दिक्कत हो सकती है, लेकिन लॉन्ग टर्म
में ये फायदेमंद साबित होंगे। एक बड़ी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के कंप्लायंस ऑफिसर
ने कहा, 'शॉर्ट टर्म में प्रस्तावित नियमों के चलते बीमा कंपनियों पर इनोवेशन,
डिजिटाइजेशन,
कस्टमर
बनाने की कॉस्ट और टर्नअराउंड टाइम में कटौती का दबाव बढ़ेगा। अगर कंपनियों की
ओवरऑल कॉस्ट कम होती है तो इससे पॉलिसीहोल्डर्स और शेयरहोल्डर्स दोनों को फायदा होगा।'
नए
खर्च के नियमों के तहत इरडा ने इंटरमीडियरीज या डिस्ट्रिब्यूटर्स को अडवांस पेमेंट
पर रोक लगाने की भी बात कही है।
इरडा ने कहा है,
'इंश्योरेंस
इंटरमीडियरीज को मौजूदा और भविष्य के बिजनस के लिए सीधे या परोक्ष तौर पर अपफ्रंट
कमिशन नहीं दिया जा सकता। किसी पॉलिसी की रिस्क स्टार्ट डेट से पहले
डिस्ट्रिब्यूटर्स को इंश्योरेंस कंपनी कोई पेमेंट नहीं कर सकती, भले ही वह पॉलिसी
रिटेल सेगमेंट की हो या कॉर्पोरेट सेगमेंट की।' अभी कॉरपोरेट
एजेंसी पार्टनरशिप के जरिये इस तरह के कमिशन दिए जाते हैं। इसमें बीमा कंपनियां
बैंकों के साथ लॉन्ग टर्म टाई-अप करती हैं। बीमा कंपनियों को बैंक की शाखाओं के
जरिये प्रॉडक्ट्स बेचना अट्रैक्टिव लगता है क्योंकि यह लो कॉस्ट मॉडल है और इससे
उनकी पहुंच तैयार कस्टमर बेस तक हो जाती है।
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ऐजेंट कमीशन पर तो आघात हो रहा है भारी भरकम कार्यालय व्यय पर भी.. .??????
ReplyDeleteऐजेंट कमीशन पर तो आघात हो रहा है भारी भरकम कार्यालय व्यय पर भी.. .??????
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